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अमृतवचन उगादी

उगादी 

परम पूज्यनीय डॉ. जी का अमृतवचन :

हिंदुओं को यह तीव्र  आभास कराना होगा की वे एक संसक्तिशील समाज हैं।  एक राष्ट्र की अवधारणा उनके ह्रदय में उत्कीर्ण करनी होगी । उन्हें एक दूसरे से स्नेह रखना होगा और अपने राष्ट्र को चरम उत्कर्ष पर ले जाने का लक्ष्य सबको रखना होगा । यही एकमात्र सकारात्मक और चिरस्थाई रास्ता है जो  राष्ट्र को पुनरुत्कर्ष की और ले जाता है और यही संघ कार्य है ।

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--- : दिवाली कि व्यथा : ---

दिवाली नहीं मैं धुआली हुई , उजाला है कम , मैं तो काली हुई | उजाला भी अब आतिशों की तरह है , पल भर को रोशन अँधेरा घना है , जलाओ दिए दिल में, कुछ हो उजाला ,                  मैं तो रुढियों की हूँ मारी हुई .                  दिवाली नहीं मैं धुआली हुई| वो दीपक की लौ का , हवा से लहकाना, वो अक्षत , वो चन्दन , वो फूलों का महकना , गंध बारूदी ने इन सब को पिछाड़ा ,                 मैं तो आतिशों की हूँ मारी हुई .                दिवाली नहीं मैं धुआली हुई | वो लक्ष्मी का पूजन , वो पुस्तक का पूजन , वो घर की सफाई , क़ि रहे दूर दुर्जन , उसी रात चौसर पे मदिरा चढ़ी ,                मैं तो खुद को जुए में हूँ हारी हुई   ...