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CWG- A Poem

आतिथेय सत्कार जहां का, दुनिया में जाना जाता है ,
नतमस्तक हों गजराज यहाँ, वह क्षण पहचाना जाता है |
तुम भूल गए इतिहास अभी, अतिथि देवो को भूल गए,
पैसों की इस चका- चौंध में, देश को कालिख पोत गए ||
मैं इसका जिम्मेदार नहीं, अब ऎसी आवाज लगाईं है , इसलिए ये धूनी रमाई है ||


मेहमानों के स्वागत में, जहां पुष्प आरती जलती है ,
उन मेहमानों के बिस्तर पर, श्वान पुत्र अठखेल गए |
जल प्लवन हुआ उसके घर में, और उसमें मच्छर पनप गए ,
जिनके पूर्वज के बाणों पर,सागर के छक्के छूट गए ||
इस पर अतीत शर्मिन्दा है, जो वर्तमान की कमाई है, इसलिए ये धूनी रमाई है ||

तुम कहते हो शर्मिन्दा हूँ, पर तुमको शर्म नहीं आयी,
गैंडे के समतुल्य जिसे, गुदगुदी कभी भी नहीं आयी |
वह राम मेरा शर्मिन्दा है, जिसने बांधा पुल सागर पर,
वह कृष्ण चुराता नजरें है, जिसने दी सर पर छत पर्वत ||
अब संशय में अतीत आया, यह कैसी संतति पाई है, इसलिए ये धूनी रमाई है ||

इन नेताओं की चिकनी चुपड़ी, बातों में हम सब भूल गए,
माँ को कर हम दरकिनार, नोटों-पैसों पर झूल गए |
हम लिप्त हुए इनमें ऐसे, भारत की इज्जत भूल गए,
मानव मूल्यों की बात है क्या, हम अपनी सीरत भूल गए ||
बचे देश इस लिप्सा से, माँ ने आवाज लगाईं है, इसलिए ये धूनी रमाई है ||

Comments

  1. Wah Pathak ji kya baat hai. Aaap to kavi ban gaye.

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  2. Adbhut! Main aapke peeda samajjh sakata hoon.

    --Nitin

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  3. bahut khoob!!!! aap ne to CWG ki dhooni rama di!!

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  4. Pathak ji kya baat hai... tum to aaj kal likhne bhi lage ho..... good keep going...

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