तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हों केवल एक प्रहर,
तुम झर - झर बहती निर्झर सी, मैं तो हूँ केवल जड़ प्रश्तर .
गुस्से में तुम तमतमाई शिव के तांडव की ज्वाला हो ,
मस्ती में तुम बच्चन के मधुशाला की हाला हो,
जब आती है हाला शाकी बन, जैसे मुझ पर ही हो नश्तर..
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर .........
हंसी छिटकती है ऐसे, जैसे प्रश्तर पर छिटके जल
हंसी मुखरती है ऐसे , जैसे खिलता है रक्त कमल
तुम गहरे पानी की ' मृणाल ' , मैं तो हूँ केवल एक भ्रमर
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर .........
केश सुनहरे लहराते ज्यूँ काले बादल में प्रकाश
पलक झपकने की मादकता, ज्यूँ शाम ढले आकाश
मैं भ्रमित पथिक भूखा प्यासा , तुम हो एक जीवनदायी कहर
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर ....
अधरों का हिलना ऐसे ज्यूँ , मंद- मंद सी कोई लहर
रक्त अधर के मध्य प्रकाशित, मोती पंक्ति ज्यों प्रथम प्रहर
यह नैन -नक्श तीखे - तीखे , हो जाऊं न घायल लगता डर.
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर
तुम झर - झर बहती निर्झर सी , मैं तो हूँ केवल जड़ प्रश्तर .
अवधेश .....
तुम झर - झर बहती निर्झर सी, मैं तो हूँ केवल जड़ प्रश्तर .
गुस्से में तुम तमतमाई शिव के तांडव की ज्वाला हो ,
मस्ती में तुम बच्चन के मधुशाला की हाला हो,
जब आती है हाला शाकी बन, जैसे मुझ पर ही हो नश्तर..
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर .........
हंसी छिटकती है ऐसे, जैसे प्रश्तर पर छिटके जल
हंसी मुखरती है ऐसे , जैसे खिलता है रक्त कमल
तुम गहरे पानी की ' मृणाल ' , मैं तो हूँ केवल एक भ्रमर
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर .........
केश सुनहरे लहराते ज्यूँ काले बादल में प्रकाश
पलक झपकने की मादकता, ज्यूँ शाम ढले आकाश
मैं भ्रमित पथिक भूखा प्यासा , तुम हो एक जीवनदायी कहर
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर ....
अधरों का हिलना ऐसे ज्यूँ , मंद- मंद सी कोई लहर
रक्त अधर के मध्य प्रकाशित, मोती पंक्ति ज्यों प्रथम प्रहर
यह नैन -नक्श तीखे - तीखे , हो जाऊं न घायल लगता डर.
तुम हो दिन और रात सभी , मैं तो हूँ केवल एक प्रहर
तुम झर - झर बहती निर्झर सी , मैं तो हूँ केवल जड़ प्रश्तर .
अवधेश .....
Aati Sundar, aati sundar, aati sundar. :-)
ReplyDelete