दिवाली नहीं मैं धुआली हुई , उजाला है कम , मैं तो काली हुई | उजाला भी अब आतिशों की तरह है , पल भर को रोशन अँधेरा घना है , जलाओ दिए दिल में, कुछ हो उजाला , मैं तो रुढियों की हूँ मारी हुई . दिवाली नहीं मैं धुआली हुई| वो दीपक की लौ का , हवा से लहकाना, वो अक्षत , वो चन्दन , वो फूलों का महकना , गंध बारूदी ने इन सब को पिछाड़ा , मैं तो आतिशों की हूँ मारी हुई . दिवाली नहीं मैं धुआली हुई | वो लक्ष्मी का पूजन , वो पुस्तक का पूजन , वो घर की सफाई , क़ि रहे दूर दुर्जन , उसी रात चौसर पे मदिरा चढ़ी , मैं तो खुद को जुए में हूँ हारी हुई ...