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--- : दिवाली कि व्यथा : ---


दिवाली नहीं मैं धुआली हुई ,
उजाला है कम , मैं तो काली हुई |

उजाला भी अब आतिशों की तरह है ,
पल भर को रोशन अँधेरा घना है ,
जलाओ दिए दिल में, कुछ हो उजाला ,
                 मैं तो रुढियों की हूँ मारी हुई .
                 दिवाली नहीं मैं धुआली हुई|

वो दीपक की लौ का , हवा से लहकाना,
वो अक्षत , वो चन्दन , वो फूलों का महकना ,
गंध बारूदी ने इन सब को पिछाड़ा ,
                मैं तो आतिशों की हूँ मारी हुई .
               दिवाली नहीं मैं धुआली हुई |
वो लक्ष्मी का पूजन , वो पुस्तक का पूजन ,
वो घर की सफाई , क़ि रहे दूर दुर्जन ,
उसी रात चौसर पे मदिरा चढ़ी ,
               मैं तो खुद को जुए में हूँ हारी हुई
               दिवाली नहीं मैं धुआली हुई |


                                                            ~  अवधेश

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