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Showing posts from September, 2010

CWG- A Poem

आतिथेय सत्कार जहां का, दुनिया में जाना जाता है , नतमस्तक हों गजराज यहाँ, वह क्षण पहचाना जाता है | तुम भूल गए इतिहास अभी, अतिथि देवो को भूल गए, पैसों की इस चका- चौंध में, देश को कालिख पोत गए || मैं इसका जिम्मेदार नहीं, अब ऎसी आवाज लगाईं है , इसलिए ये धूनी रमाई है || मेहमानों के स्वागत में, जहां पुष्प आरती जलती है , उन मेहमानों के बिस्तर पर, श्वान पुत्र अठखेल गए | जल प्लवन हुआ उसके घर में, और उसमें मच्छर पनप गए , जिनके पूर्वज के बाणों पर,सागर के छक्के छूट गए || इस पर अतीत शर्मिन्दा है, जो वर्तमान की कमाई है, इसलिए ये धूनी रमाई है || तुम कहते हो शर्मिन्दा हूँ, पर तुमको शर्म नहीं आयी, गैंडे के समतुल्य जिसे, गुदगुदी कभी भी नहीं आयी | वह राम मेरा शर्मिन्दा है, जिसने बांधा पुल सागर पर, वह कृष्ण चुराता नजरें है, जिसने दी सर पर छत पर्वत || अब संशय में अतीत आया, यह कैसी संतति पाई है, इसलिए ये धूनी रमाई है || इन नेताओं की चिकनी चुपड़ी, बातों में हम सब भूल गए, माँ को कर हम दरकिनार, नोटों-पैसों पर झूल गए | हम लिप्त हुए इनमें ऐसे, भारत की इज्जत भूल गए, मानव मूल्यों की बात है क्या, हम अपनी स...

Common Wealth Games

Not all said was wrong after all